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समस्या और सकारात्मकता

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समस्याएँ  आती हैं , यह  जीवन का अभिन्न भाग हैं। कार्य करने की कल्पना से ही समस्याओं का भी आना निश्चित हैं,क्योंकि  ऐसा कोई भी कार्य या उपक्रम नहीं हैं जिसको संपन्न करने में कोई न कोई समस्या का सामना करना पड़े , चाहे वह छोटी ही क्यों न हो.इन  समस्याओं  को निपटने में ही कार्य की सफलता निर्भर करती हैं हर समस्या की अपनी फरियाद होती हैं। तर्क होता हैं। बस निपटान की प्रक्रिया को  जिम्मेदारी से समझना चाहिए। इसके साथ ही एक महत्वपूर्ण बात भी समझना अति आवश्यक हैं।  बिना घबराए स्थिति पर विचार करें। कुछ देर के लिए सामने आई समस्या को अपने से  थोड़ा दूर रख कर उसका मुआयना करना ,तथ्यों को समझना चाहिए। इससे समाधान में सहुलियत होगी।समस्या के  काफी नजदीक जा कर विचार करने पर मन परेशानहो सकता हैं , घबराहट और बेचैनी के साथ साथ कई अन्य तरह परेशानियाँ  भी आ सकती हैं। हर इंसान का समस्या को देखने का नजरिया में फर्क होता हैं। स्वभाव के अनुसार किन्ही को ज्यादा परेशानी महसूस होती हैं।  यहाँ पर ही एक धारणा  विकसित  करने की जरुरत हैं  ,कि  समस्या आती हैं , और दूर भी हो जाती हैं। जीवन चलने का नाम हैं ,ठहराव  नहीं हैं। इस लिए उसके साथ अपना मन ,बुद्धि ,विचार को  स्पष्ट और जागरूक रख कर साधन और संकल्प की दृढ़ता से इस्तेमाल करे। सकारात्मकता के साथ समाधान का तरीका अपनाये। क्योकि समस्याओं की बोझ की गठरी जब हमारे आगे ही बंधी रहेगी तो उससे निकलना आसान नहीं होगा  कारण  वह बुद्धि  और साधन का भरपूर उपयोग नहीं करने देगा। लेकिन उसी गठरी को  पीछे पीठ की और रखने से आगे का रास्ता साफ दिखेगा और उपलब्ध साधन और माध्यम का भरपूर उपयोग कर समाधान का मौका देगा। बिज्ञान का भी सिद्धांत यही समझाता हैं  कि किसी भी बोझ को पीठ पर  ढोना या धकेल कर अपने  से दूर करने से कार्य सिद्ध होता हैं। यदि ऐसा नहीं करने पर उसी बोझ के नीचे दबने की स्थिति पैदा हो सकती हैं। शरीर बिज्ञान के अंतर्गत भी अपने शक्ति से अधिक कार्य करना हो या भार उठाना हो तो लम्बी सांस साथ अपने अंदर ऑक्सीजन की भरपूर मात्रा को लेना आवश्यक हैं क्योकि  शक्ति लगती है। इस तरह प्रकृति हमें वह सारा तरीका बताती हैं जीवन में अनेको तरह की घटना घटती हैं हमेशा ही उसका परिणाम प्रकृति से प्रभावित होता हैं। कुछ कम या अधिक हमें अपने ज्ञानेन्द्रियो  के आदेश को मानना जरुरी हैं। तात्पर्य हम समस्या के समाधान के लिए उसमे डूबने के बदले विवेक के साथ विचार करे  निश्चित सफलता मिलेगी। मानसिक और शारीरिक तंदुरस्ती बनाए  रखना भी आवयश्यक है। स्वस्थ मन निर्णय लेने का समर्थ माध्यम होता हैं। यहाँ पर हम कह सकते है कि जीवन में समस्या का आना और उसका समाधान करते हुए आगे बढ़ना ही सकारात्मकता हैं।

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