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माँ कहती थी

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नारी  सशक्तिकरण के दौड़  में भी महिलाएँ शोषित हो रहीं हैं। जब भी समाचारपत्र या  टेलीविजन पर समाचारों  में  महिलाओ बच्चियों  के साथ निंदनीय ब्यवहार  की खबर छपती हैं ,तब किसी का भी ह्रदय दुःख से भर जाता हैं। आँखों में आँसू  आ जाते हैं। दर्द का अहसास हमारी भाव भँगिमा में भी दिखती हैं,कुछ अपवाद ही हो सकते हैं जिनको यह सृष्टि की सामान्य घटना  लगती हैं। किन्तु हमारा विषय यह नहीं हैं की हमें कितना दुःख होता हैं ,या नहीं होता हैं  बल्कि इस  बिकृत आचरण के लिए  जिम्मेदार कौन हैं।इस के लिए समाज का  कोई एक वर्ग या   कोई  निश्चित इलाका  जिम्मेदार नहीं हैं ,बल्कि एक असंस्कारिक,अमर्यादित अमानवीय सोच हैं  जो ब्यक्ति को उचित अनुचित के विचार को ख़त्म कर देता   हैं।हमारी  सामाजिक मान्यताओं में स्त्री को सम्मानित स्थान प्राप्त हैं। फिर भी  ऐसा अब्यवहारिक  कृत्य कोई कैसे कर सकता हैं सोचनीय हैं। अपनी क्षमताओं को एक अतृप्त वासना के अधीन कर अपने  ब्यक्तित्व को धूमिल कर अपना सम्पूर्ण  को धूमिल करता हैं। नारी सिर्फ भोग्या नहीं हैं उसकी भी अपनी प्राथमिकताएँ  हैं। अपनी पसंद ,नापसंद का हक़ हैं। वह प्रकृति की सुन्दर संरचना हैं सांसारिक परिदृष्य में जीवन को सींचती हैं। सृष्टि के रचियता ने इस कोखधारी के जिम्मे अपनी मह्त्वपूर्ण कार्य सौंप रखें  हैं। ऐसे में उसको तकलीफ  दे कर हम सृष्टि के रचियता को तकलीफ पहुंचाते हैं ,क्योंकि स्त्री और पुरुष के निर्माण में परमात्मा का उद्देश्य संसार को सुखी और आनंद के साथ सृष्टि का विस्तार  करना था।मैथलीशरण गुप्त  रचित कबिता अबला जीवन हाय  तुम्हारी यही कहानी आंचल में है दूध ,आँखों में हैं  पानी।  नारी की स्थिति की मार्मिक पक्ष का वर्णन है।

 

एक चिंतन———

 

एक पल के लिए सोंचे  यदि नारी नहीं हो तो जननी कहाँ होगी ,माँ कौन होगी ,पालन कैसे होगा। माँ ,बहन पत्नी ,बेटी के रिश्ते नहीं होंगे तो समाज का रूप क्या होगा। पशुवत सुख के कल्पना इंसान को किस ब्यवस्था में बांधेगी। उन्मुक्त अब्यवहारिक समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती हैं. हमारे समाज में हर ब्यक्ति का खास सोच होता हैं।  सुन्दर  सुखी जीवन  लिए नारी की गरिमा को बनाये रखना  अति आवश्यक हैं  क्योंकि नारी देह नहीं ,  बल्कि एक चिंतनचर्या जो सुबह से शाम ,हमारे मनोबल को बनाए रखती हैं ,  ,जरूरतों को बेहतर समझने वाली साथी हैं  ,अधिकारों और कर्तब्यों को  निभाने  वाली निर्भीक  प्रहरी हैं  ,और जिंदगी को दिशा देने वाली धुरी हैं। ममता ,प्यार  सेवा ,और समर्पण की मूर्ति नारी पूजनीय हैं। कहा गया हैं कि’ “‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते  रमन्ते तत्र देवता:   यत्रेयस्तु न पूजयन्ते सर्वास्तत्राफला :क्रिया : अर्थात  जहाँ पर नारी को सम्मान मिलता हैं ,वहाँ नारी पूजनीय हैं ,उस जगह देवता का बसते  हैं। कुल के देवता प्रसन्न रहते हैं  संतति सुखी रहते हैं। इसके बिपरीत जहाँ  नारी का अपमान होता हैं वहाँ पर किये गए सभी कार्य यज्ञ ,अनुष्ठान निष्फल हो जाते हैं ,कुल को अपयश लगता हैं। संतति को कुमार्गी होने की प्रबल संभावना बनती हैं।

 

जब भी हम कष्ट में होते हैं अनायास   माँ   शब्द ही मुँह से निकलता हैं।  फिर क्यों हम माँ  के अधिकारी पद को अपमानित करते हैं। सोचिए  जानबूझ कर अपने सुखो के खजाना को अपने हाथ ही लुटा देते हैं। क्या किसी को कष्ट देकर सुख प्राप्त किया जा सकता हैं, अपने अनुभव को सच्चाई से महसूस कीजिए। एक लड़की जब  असहनीय वेदना झेल कर माँ बनती हैं , बच्चों को पाल  पोस  कर बड़ा करती है , शिक्षा दीक्षा दे कर सक्षम बनाती  हैं।  इसके लिए वह कितने कष्ट उठाती  हैं  , कभी कभी अपमान जनक स्थिति का भी सामना करना पड़ता है ,फिर भी  वह घबराती  नहीं  हैं , क्यों की उसका उद्देश्य अपने बच्चे को समर्थवान बनाना होता हैं।वह अपना सब कुछ अपने बच्चे के साथ ही जीती है , ऐसे में हम को यह याद रखना चाहिए माँ का जीवन हमारे लिए अमूल्य है।

बृद्धाआश्रम में रहने वाले बृद्ध माता पिता को हर पल अपने संतान के  साथ बिताए  गए समय की यादें  ही उनकी पूंजी होती हैं।  अक्सर उन्हें एक प्रश्न कचोटता हैं  क्या इसी तरह के जीवन की कल्पना की थीं। हमारी खांसी  लाईलाज हैं तो क्या हुआ ,हमारे घुटने काम नहीं कर रहें  तो क्या हुआ ,मलमूत्र त्यागने का अहसास नहीं हो पाता  तो  क्या हुआ। हमने भी तो बच्चों  को बचपन अपने गोद  को गीला  कर के ही जिया,  उसके मासूमियत को छाती से चिपका कर अपने को धन्य माना।  उन्हें  भरोषा है की उनका बेटा जो  उनके रचित संसार का सबसे बड़ा सुख हैं,  उनके लिए बलिष्ट हाथों  से उनका सेवा करने का अधिकारी हैं, ,उनकी मानस में घुली मिली उनकी पुत्री जो हर भावना को समझ सकती हैं,उसका गर्व  हैं। इसी आस में उनकी नज़रे इंतजार करती हैं। वह  अपने को ढाढ़स देते हैं  जीवन रुकता नहीं हैं  चलने का नाम ही जीवन हैं  सुख आएगा ,  सपने पुरे होंगे

 

यहाँ पर स्पस्ट हैं की जीवन को पाना नारी शक्ति  की बड़ी उपलब्धि हैं हर क्षेत्र में अपनी योग्यता के बल पर  अपनी  उपस्थति को दर्ज कराने  के बाबजूद वह निश्चिंतता नहीं बन पाई हैं।  समाज में घट रही घटनाओं पर एक चिंतन करे  अपनी संबेदना को महसूस करे , नारी  का त्याग अनुकरणीय हैं,  शक्ति का स्रोत हैं ,हमें इस बात का ध्यान रखना हमारे संस्कार को परिमार्जित करती हैं।   यह सूत्र समाज को सकारात्मक  दिशा देगा।

 

नारी  शक्ति  की चिंतन को समर्पित  कुछ शब्द —

माँ कहती थीं ,

जोगा के चलिह ,

अन्न का भंडार ,

कुल की ,वंश की ,

परंम्परा,

वर्जनाएँ,

जब टूटती हैं ,

प्रश्नचिन्ह,

खड़ा होता हैं ,

स्वयं पर ,

परिवार ,समाज और देश पर,

जबाब,

कौन देगा ,कहाँ ,कब और कैसे,

मिलेगा ,

नारी की

मर्यादा ,

वाणी का,

संयम ,

भावों  की,

गरिमा,

कीमत समय की,

सभी को,

जोगना  ही हैं,

उचित संस्कार,

प्रकाश स्तम्भ हैं,

हमारे मूल्यों का ,

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