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कार्तिक पूर्णिमा पर बिशेष – हरिहर क्षेत्र की महिमा

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बिहार राज्य का सोनपुर एक धार्मिक  ऐतिहासिक स्थल हैं। यह स्थान मुख्यतः एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला के लिए प्रसिद्ध है.  कार्तिक पूर्णिमा के दिन  से शुरू होने वाला ग्रामीण  मेला का  विशाल स्वरूप में बिहार की अनुपम संस्कृति का अवलोकन किया जा सकता हैं। सोनपुर का यह क्षेत्र हरि और हर का एकीकृत क्षेत्र हैं यानि हरी और हर का मिलन की स्थली हरिहर नाथ बाबा के नाम से प्रसिद्ध हैं।

हरिहर नाथ क्षेत्र की ख्याति गंगा और गंडक नदी की संगम क्षेत्र कोनहारा में गज  ग्राह युद्ध  से हैं।   नदी मे जल पीने गए गजराज  का पैर  ग्राह ने पकड़ कर जब अपनी और खींचने लगा तो गज अपने बचाव में समस्त शक्ति लगा दिया किन्तु वह ग्राह से अपने को छुड़ा नहीं पाया। पूरी तरह से हताश गजराज ने अपने इष्ट भगवान विष्णु से आर्त प्रार्थना की उसकी कातर पुकार  हे प्रभु अब राखो शरण अब तो जीवन हारे तीन पहर युद्ध हुए ले गयो मंझधारे , नाक कान डुबन लागे कृष्ण  को पुकारे।कहा जाता है की गज की पुकार सुन भक्त बत्सल भगवन विष्णु दौड़े चले आये ,अपने सुदर्शन चक्र से ग्राह को मार डाले और गजराज की रक्षा किया। भगवन गज को जीवन की रक्षा की वही ग्राह को मोक्ष प्रदान किया।  गज ग्राह की लड़ाई में कौन हारा और कौन  जीता इसका निर्णय नहीं हो पाया।क्योकि दोनों ही अपने पूर्ब जन्म में  भगवान के  परम भक्त थे श्राप वस गज और ग्राह रूप में आये। इस लड़ाई में भगवन ने दोनों को अपनी भक्ति का  प्रतिफल प्रदान किया। यह घटना जहां घटी वह जगह आज कोनहारा घाट  के नाम से जाना जाता हैं।

प्राचीन भारतीय मतों में बैष्णव और शैवों के बीच अक्सर मतभेदों के उदाहरण मिलते हैं सोनपुर का हरिहर नाथ मंदिर इस बात की पुष्टि करता है की शिव और विष्णु एकही हैं। शिव और विष्णु एकीकृत भाव में हैं। मंदिर में स्थापित मूर्ति हर और हरि का दिव्य स्वरूप का दर्शन कराता हैं। यहां पर स्थापित मूर्तियां गुप्त एवं पाल कालीन हैं।मंदिर का दर्शन मनोहारी हैं।

मेला  में  जीवन उपयोगी सारी वस्तु की उपलब्धता होती हैं। ग्रामीण इलाके के लोग अपनी आवश्यकता की सभी वस्तु मेला से खरीदते हैं।किचन में उपयोग वाले बर्तन से ले कर फर्नीचर शादी ब्याह में दिए जाने वाली वस्तुएँ  सोनपुर मेला में सहज मोल तोल कर खरीदने की परिपाटी पुराने समय से चली आ रही हैं। पुरानी पीढ़ी  आज भी मेला की खरीदारी में आनंद मह्सुश करती हैं। मनोरंजन के बिभिन्न रूप का भी आनंद लिया जा सकता है प्राचीन लोक कला से ले कर आधुनिक ऑर्केस्टा तक मेला का आकर्षण होता हैं। खान पान के बिभिन्न स्टाल स्वाद को भी संतुष्टि प्रदान करता हैं।बिहार की जनसंस्कृति के बिभिन्न आयामों का दर्शन मिलता हैं।

सोनपुर का हरिहर क्षेत्र का पशु मेला का इतिहास बहुत पुराना हैं। कहते हैं की चन्द्रगुप्त मौर्य (३४०ई पूर्व  २९८ई पूर्ब )मे इसी मेला से हाथिया खरीदी थी। मुग़ल सम्राट अकबर ने भी युद्ध के लिए पशुओं  की खरीदी की थी। बीर कुवँर सिंह ने अपने घोड़े और हाथीइसी मेले से लिए थे। अंग्रेजी शासन द्वारा एक बड़ा अस्तबल भी बनाया गया इस मेले का गौरव पूर्ण इतिहास रहा हैं क्योंकि एक समय बिदेशो से अफगान ईरान इराक आदि देशों  से लोग पशुओं की खरीदारी के लिये लोग आते थे।

इस तरह हम कह सकते हैं की सोनपुर का हरिहर नाथ बाबा क्षेत्र भारत की गौरव पूर्ण परम्परा की संस्कृति की समृद्ध संचरण का केंद्र स्थली हुआ करती थी। उसकी प्राचीनता ,धार्मिक और ब्यापारिक ,सांस्कृतिक महिमा के बारे में जितना कहा जाये कम  हैं।

 

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