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प्राकृतिक चिकित्सा एक अनुभव——-पतंजलि वेलनेस सेंटर हरिद्वार

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रोग की असहजता सभी को अहसास हुआ होगा ,छोटा या बड़ा रोग तो  रोग हैं। जब थोड़ी सर्दी भी हो जाए तो हाल ठीक नहीं हैं  का जबाब मिलेगा। आज हम कितने तरह के बीमारियों का नाम सुनते हैं ,और कहते हैं  कि क्या समय आगया किस किस तरह की बीमारी हैं ,नाम भी सब का पता नहीं। अभी कोरोना का ही कितना वैरियंट आ रहा हैं आदमी समझ नहीं पा रहा हैं।  साइंस को सर्बोपरी मानने वालो ने भी प्रकीर्ति कीआहार प्रत्याहार,के नियम ,आचार ब्यवहार अनुशासन में दिलचस्पी दिखलाई।

पतंजलि वेलनेस सेंटर फेज।। हरिद्वार में बिताया गया हर पल पल में एक विशेष दैवीय शक्ति की अनुभुति हुई। एक सन्यासी जो वेद वेदांग का शिक्षा लिया ,योग की कठिन साधना किया,जिसने संस्कृत माध्यम से शिक्षा विषयों का अध्ययन किया। उसके अंदर आज की आधुनिक परिवेश की हर बातें जो ब्यावसायिक गतिबिधि के लिए मान्यता प्राप्त है। उसका साङ्गोपाङ्ग उदाहरण उपलब्ध हैं। कहना अतिसयोक्ति नहीं होंगी कि प्राकृतिक ब्यवस्था में आधुनिकता का समावेश अद्धभुत हैं।

प्राकृतिक चिकित्सा में योग और पंचकर्मा के बिभिन्न तरीके जिनमें मड थैरेपी ,वाटर थैरेपी ,मसाज थैरेपी ,स्टीम थेरेपी ,यज्ञ थेरेपी ,श्रृंगी थेरेपी  लीच थेरपी , शिरोधारा ,फिज़िओथेरेपी ,एक्यूपंचर ,एक्यूप्रेसर ,शंखप्रच्छालन ,एनिमा , ब्लेसिंग थेरेपी के साथ साथ आहार ,बिचार का जो पोषण होता हैं वह अनुकरणीय हैं। उतने बड़े परिसर की ब्यवस्था सहज गम्य निर्बाध चलती हैं। सभी कार्यकर्त्ता ,थैरेपिस्ट और चिकित्सक   अनुशासित शिस्टाचार के साथ ब्यवहार करते हैं ,इस कारण हर रोगी को आत्मीय ब्यवहार मिलता हैं। स्वामी रामदेव बाबा की दिनचर्या और सोच में कठोर अनुशासन का सन्देश बहुत ही प्रभावी असर डालती हैं।

भोजनालय की गरिमायुक्त ब्यवहार ,और चिकित्सा केंद्र में थेरेपिष्टो का जज्बा और ब्यवहार स्वामी रामदेव के अनुशासन ब्यवस्था का ज्वलंत उदाहरण हैं। किसी ने अपने कर्तव्य निभाने में कमी नहीं की ,उनके हाथ थक  जाते थे फिर भी मुस्कुरा कर बोलती थेरेपी सब की होगी। कभी कभार किसी  ने जल्दी करने का दबाब बनाया तो उनसे आग्रह करती आंटी थोड़ा धैर्य रखिये थेरेपी का समय निश्चित रहता हैं ,उतना समय देना पड़ता हैं। आपकी भी थेरेपी उसी तरह होगी। बात सही हैं  क्योंकि सभी इसी मकसद से पतंजलि आए हैं। मेरा मन उन बच्चों के प्रति भर जाता था। दिल में  एक बात उठती हर परिवार में भी यही शालीनता और अनुशासित ब्यवहार नई पीढ़ी में मिलता तो शायद किसी को नैचरोपैथ में जाने की जरुरत नहीं पड़ती।

इंसान की महत्वकांक्षा और जरुरत से ज्यादा या कम सक्रिय होना ऊर्जा का ह्रास कर रहे हैं। इंसान अपने ही शरीर को ढोता फिर रहा हैं। जो जीवनअनुशाशित दिनचर्या को को प्राप्त होनी थी वह निरर्थक विचारों और कभी संतुष्ट नहीं होने वाली तृष्णा के पीछे  भागते भागते किसी चौराहे पर हॉफ रही होती हैं। मन विकारो से भरा हुआ अतृप्त आकांक्षाओं से लबालब बेसुध हो रहा हैं। जागरूकता और सहजता की जगह उतावलापन ,बेचारगी ,नाराजगी के दलदल में फँसा रह रहा हैं।

स्वामी जी के प्रयासों को सहज रूप से स्वीकार कर के अनेकों लोग अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ को पा  चुके हैं। आने वाले में बहुत से लोग अपनी परेशानियों से  उबर  कर आशान्वित हैं। जीवन जीने के लिए है , इसलिए रोग और अवसाद को मिटाना जरुरी हैं। कहना सही होगा कि  बिना रुके पुरषार्थ करने की ललक और अपने कर्तव्यों को बिना असमंजस में आए पूरा करना का  लक्ष्य भेदा जा सकता हैं। पतंजलि में स्वामी रामदेव बाबा को देख कर सहज ही महसूस किया जा सकता हैं। गुरुकृपा और दिव्य मार्ग दर्शन की महिमा समझा जा सकता हैं।

चिकित्सा तो वही हैं जो हमारे दैनिक जीवन में भी ब्यवहार में आते रहते हैं।मिट्टी  की पट्टी ,तेल का मालिश ,या फिर वस्ति ,लेकिन उसकी उपयोगिता को ब्यक्ति विशेष को बताना और अहसास कराना  की प्राकृतिक साधन ही हमारे स्वस्थ जीवन का आधार हैं। हमारे बुजुर्ग वाटर थेरपी की तरह ही नदी में स्नान ,कुआँ पर स्नान प्राथमिकता देते थे ,आज भी इसकी जरूरत हैं। नेति ,एनिमा, बमन बिरेचन अदि शरीर की विषाक्तता को कम करने की प्रचलित प्रक्रिया हैं।

आहार प्रबंधन की बात कही जाये तो अद्वितीय हैं। जिस तरह उनकी कद्दू कल्प ,अनार कल्प आदि हैं,साथ ही उपवास वह भी फल खा कर। फल भी उत्तम किस्म के ,ड्राई फुड हो या मौसमी फल ,और शब्जी। हर कोई खाने को तरसता लग रहा होता ,लेकिन संतुष्टि भी गजब की दो दिनों में ही खाने का उतावलापन सहज हो जाता हैं। सात दिनों में तमो गुण  ,रजोगुण और सतोगुण को महशुस किया जा सकता हैं। शांति मिलती हैं। जिससे भी पूछिए खाना कैसा हैं वह यही बोलता की क्या किया जाए स्वामी जी ठीक ही कर रहे हैं हमें बहुत आराम हुआ हैं। घर पर तो होता ही नहीं यहाँ ठीक हैं। अब क्या चाहिए कुछ पाने के लिए तो थोड़ा त्याग तो होना ही चाहियें। हाँ कुछ लोगो को कहना खाना थोड़ा हमारे को हमारे अनुसार देते तो बाबा जी क्या घट जाता लेकिन यह बिनोद में कहते क्योंकि सभी  महशुस करते है की खाना हमारे अनुरूप ही मिल रहा हैं।

सभी अपने को शारीरिक और मानसिक रूप से  स्वस्थ देखना चाहते हैं। स्वामी जी अक्सर कहा करते हैं  बच्चों ऐसा नहीं हैं कि पतंजलि में खाने की कमी हैं ,लाखों लोग प्रतिदिन लंगर  में खाते  हैं। लेकिन तुम्हारे लिए ही यह भोजन की  ब्यवस्था इस तरह की गई हैं ,कि तुम स्वस्थ हो जाओ। निरोगी काया सबसे बड़ा धन हैं।इस तरह सात दिन वेलनेस सेंटर में  बिताए अनुभव में  पाए की जीवन जीने के प्राथमिक सूत्र ही हमें  स्वस्थ रहने का साधन हैं। आधुनिकता को अपनाये जाने के साथ अपनी प्रकृति को नहीं बिगाड़े। सादा खाना ,शारीरिक मेहनत ,उत्तम चिंतन ,और परोपकारी होना ही इंसान  को स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक सूत्र है हमें यही अनुभव हुआ। ।

यह लेख मेरे पतंजलिवेलनेस सेंटर हरिद्वार में बिताये गए  समय और  अनुभव पर आधारित हैं। जरुरी नहीं की दूसरे का अनुभव भी यही हो। मैंने अपने स्वास्थ  में कुछ लाभ प्राप्त किये साथ ही खान पान की जो मेरे लिए सही हैं  उसकी जानकारी मुझे मिली।बिना दवा  की  सभी प्रकार प्राकृतिक चिकित्सा हमें एक ही जगह मिला इससे हमें सुबिधा हुई। आध्यात्मिक वातावरण ,आत्मीय अनुशासन भरा माहौल ,कष्टों को दूर करने उपाय ,के साथ आउटिंग का आनन्द  स्वामी रामदेव के प्रयासों की सफलता हैं। धन्यबाद।

 

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