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जेकरे ला चोरी कइली सेहे कहलक चोर

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जेकरा लागि चोरी कइली सेहे कहलक चोर। कहे को कह गए,लेकिन अब  तो बारी उसे साबित करने की , सो भाई अब तो सुनना ही पड़ेगा इस कहानी को चलो सुनते हैं। राजपुर गाँव में सुमंत राय  का परिवार रहता था। प्रतिष्ठित किसान थे जमीं जायदाद अच्छी खासी थी। उनके चार बेटे थे। सभी बड़े प्यार रहते थे। बड़े भाई राधाकांत पोस्टऑफिस की नौकरी करते थे। तनख़ाह  अच्छी थीं ,घर का खर्च आराम से चल रहा था। उनसे छोटा रमाकांत ,राजा कांत और उमाकांत अभी पढ़ाई  कर रहे थे। परिवार में बड़की दुल्हिन सुधा  सुन्दर , सुशील और शांत स्वभाव की थी। ब्यवहार कुशल सुधा ,बड़े मन से सास ससुर -ससुर की सेवा करती थी। परिवार में आनंद मंगल था। रमाकांत और राजा कांत पढ़ने में अच्छे थे इसलिए राधाकांत ने उनके पढ़ाई के लिए बिशेष ब्यवस्था किया। वह अक्सर भाइयों को समझाता ,भाई मेरे तुम लोग पढ़ो लिखो मन से ,अच्छे इंसान बनो। सिर्फ अपने खाने पीने के लिए तो सब कमा लेते हैं। कुछ भी कर पैसे भी आ जाएँगे ,किन्तु सम्मान पुर्वक जीवन जीने के लिए शिक्षा जरुरी हैं और शिक्षा भी वैसी जो आपके अंदर नैतिकता ,सहजता कर्मठता पैदा करे। विवेक शील बिद्वता ही स्वयं का ,परिवार का  ,समाज का राष्ट्र का उत्थान कर सकता हैं। अभी का समय का उपयोग अपने ज्ञान को बढ़ाने,चरित्र निर्माण  के लिए ,करना चाहिए। इसलिए अपने को  पूर्ण अनुशासित रखो। मानसिक और शारीरिक, मजबूती के लिए नित्य कसरत अभ्यास आप सब को करना चाहिए। भोजन भी जो उपलब्ध हो समय पर करना हैं। सभी  भाई ध्यान से बड़े भाई राधाकांत की बातें सुनते। भाई की बातो का उनपर असर भी  होता सभी को उनकी बात समझ में आती। सिर हिला कर सभी भैया को आश्वस्त कर देते। जब भी समय मिलता यह क्रम दुहराया जाता। धीरे धीरे समय बीतता गया और रमाकांत  और राजाकान्त ने क्रमश मेट्रिक और इंटर पास कर ली , उमाकांत अभी नीचे के क्लास में था लकिन वह पढ़ने में ध्यान नहीं लगा पाता  था रिजल्टअच्छा  नहीं आने से उसकी रूचि भी नहीं लगती थी।  किसी भी तरह से उसे किसी काम  में लगाने की बात अक्सर घर में चलती थी।

राजाकान्त मास्टर और रमाकांत इंजीनियर बन गए। अच्छीसरकारी नौकरी लगी उनकी पढ़ी  लिखी सुन्दर ,संस्कारी लड़की से शादी हो गई। सभी अपनीअपनी जिंदगी में   खुश थे। राधाकांत के बच्चे भी पढ़ने के लिए हॉस्टल चले गए। सुधा को छोड़ दोनों बहुएँ भी अपने पतियों के साथ चली गई थी। घर में अब वह रौनक नहीं था राधाकांत के  माता पिता को बच्चों की याद  बहुत सताती।  हमेशा ही अपने को बच्चों  बीच ही रखे थे।  अपने अंदर एक खालीपन महसूस करते। राधाकांत माता जी समझते की बच्चों के लिए पढ़ाई के लिएअब  बाहर  भेजना ही होगा  माँ,अब पहले जैसा माहौल नहीं हैं। अब  बच्चों को जीवन को  सफल बनाना है  तो  काफी मेहनत करनी हैं। इस लिए उन्हें  सारी  चिंताओं  से दूर रखना हैं तभी वह लक्ष्य पा  सकेंगे। माँ मतलब तो समझ ही रही हैं लेकिन  मन तो सब के पास रहना चाहता हैं , सो बेचारी मन कड़ा कर बोली बेटा  हां  ठीक हैं  हम का जाने बबुआ इसब। सिरके  पल्लू को ठीक करते हुए माँ और नजदीक आ कर धीरे से राधाकांत से बोली ,ऐ बबुआ एगो बात बोली।  हां    माँ   बोलिये। माँ बड़े लरजते हुए कहने लगी देखअ  उमाकांत के पढाई हो गइल माटिक कए गइलन ,अब कौनो बढ़िया लईकी देख के बियाह कर दियाव। घरवा अब सुन लागता।  राधाकान्त समझ गए की माँ को अब छोटी बहु भी चाहिए  माँ का हाथ पकड़ कर बोले ,हा माँ ठीक हैं  हो जायगा आप चिंता छोड़ दीजिये।

माँ अब हर कोई से अब उमाकांत के लिए सही लड़की ढूंढ़ने की बात करती। अगुआ भी आने लगे। मठिया के पास के  गाँव रामपुर  के मगनदेव राय  अपनी छोटी बेटी विद्या केशादी के लिए आये। मगनदेव राय सरकारी कार्यालय में कलर्क थे। राधाकान्त पिताजी से बिचार बिमर्श यहाँ रिश्ता करने का मन बनाया। भाईयों से चर्चा किया सभी ने कहा भैया आप को ठीक लगा तो तय कर दीजिए। लड़की देखा देखी  हुआ। सभी को ठीक- ठाक लगा  शादी का दिन भी जल्दी निकल गया। सभी खुश थे। माँ  को ज्यादा प्रसन्नता  थी उमाकांत सबसे छोटा था ,कोरपोछवा, सो माँ  का लाड़ला भी था।

शादी हो कर बहु घर आ गई। माँ का समय अब बहु  के साथ बीतता।  विद्या  बच्ची थी,भोली थी। उसका चुलबुलापन ,उसका हँसना ,बोलना  सभी को अच्छा लगता। सुधा ने भी विद्या को सभी के  तौर तरीके और ,सब के पसंद नापसंद  को बतलाती। सुधा को भी थोड़ा आराम मिल रहा था। विद्या की चंचलता कुछ समय तक माता जी अच्छा लगा परन्तु उन्हें अब चिंता होने लगी की कब यह सलीके से रहेगी। ससुर ,भैसुर के सामने भी इसी तरह उछलती कूदती रहती है। सुधा से बोलती। बड़की समझावत काहे नइखू।सुधा बोलती  माँ अभी बच्ची हैं , यहाँ देखते देखते सब  सीख  जाएगी। माँ आप  चिंता मत कीजिये। माँ को सुधा पर गुस्सा आने लगा था माँ को लग रहा था  सुधा जान बुझ कर उसको नहीं टोकती हैं।

माँ ने उमाकांत को धिराया  देखअ बबुआ  छोटकी कनिया केबुझाव, तहार  बतिया बुझी।  हमरा तनिको निक न लागेला एकर रहन। ससुर भसुर के घर बा लोग का कही।  उमाकांत माँ से ठीक हैं कह कर चले  गए। माँ मन ही  मन  बिचार करने लगी। कितनी सूंदर हैं  विद्या की  बोली सुन मन का संताप दूर हो जाता हैं ,इसके आने से घर आँगन गुलजार हो गया है सब तो ठीक हैं ,बिलकुल गुड़िया लगती हैं कैसे इसे समझाए।

माँ आपके लिए भूंजा ले कर आई हूँ  खाइये ना कहते हुए विद्या भूंजा की कटोरी माँ के सामने रखी। माँ कुढ़ते हुए बोली ,  दाँत बा जे भूंजा खाई  तू लोग खा। हँसते हुए विद्या बोली माँ देखिये न मैं इसको चूर कर आपके लायक बना दी हूँ ,खाइये न अच्छा लगेगा  कहते  हुए हाथ पकड़ कर कटोरी में  डाल दिया। माँ ने देखा सचमुच महीन चुरा था। थोड़ा सा ले कर माँ मुँह में डाल  ली स्वाद बिलकुल  भूंजा का था। विद्या ने पूछा ,कैसा लगा माँ। ऐ बबुआ   बहुते अच्छा भुजवा बाटे, खाये के बडा मन करत  रहल  तू खिया दिहलू बनल रह। माँ का आशीर्वचन सुन विद्या जाने लगी तो ने रोका   ए बबुआ बइठा  तहरा से एगो  बात कहतानी ध्यान से सुनो ससुरा में नैहर नियर न रहल जाला  तनी गंभीर बन रहे केरहे के चाही । ससुर भसुर के सामने सीधे न जाये के  तनी  इ सब समझे के चाही।विद्या यह सब सुनी और अनसुना कर चल दी।  माताजी को यह बिलकुल अच्छा नहीं लगा। अपने अपने बड़बड़ाती हुई बोली , बेरहन बा  कौनो समझ नइखे।

माताजी की भतीजी ज्योति दीदी शादी में नहीं आ पाई थी सो उन्होंने बहु को देखने के लिए आई सब लोग ज्योति दीदी के आने से  खुश थे। सुधा उनके पसंद का खान पान की ब्यवस्था में लगी रहती विद्या भी उनके साथ साथ काम में लगी रहती  सुधा  और विद्या सारे  काम तरीके संभाल  रखे थे।ज्योति दीदी माता जी बातों से पुरजोर सहमत थी की बहु को थोड़ा बड़ा जेठा से पर्दा करना जरुरी हैं। ऐसे ही थोड़े चलेगा आखिर ससुराल हैं। उन्होंने तो अब टोका टोकी की की शुरुआत कर दी ,कनिया ये मत करो वो मत करो ऐसे नहीं करना हैं। विद्या को अब दिनचर्या बोझिल लगने लगा।.हँसना बोलना अब खुल कर नहीं कर पाती । बुझी बुझी सी रहने लगी। उमाकांत ने समझाया विद्या सुनो ज्योति दीदी को  बातों  का बुरा नहीं मानो ,पुराने ख्याल है उनके इसलिए उनकी बातों को दिलपर मत लो। कुछ दिन बात हैं फिर तो वह अपने घर चली जाएँगी कौन सा यहाँ वह हमेशा रहेंगी।

ज्योति दीदी को लिवाने उनका लड़का आए। अब दीदी जाएँगी सब अभी कुछ दिन और रोकना चाह रहे थे। सब से  ज्यादा माता जी चाहती थी की ज्योति कुछ दिन और रुके ,क्योकि उन्हें लग रहा था की ज्योति ही छोटकी बहु को रीत रिवाज सीखा सकती हैं। लेकिन लड़के ने ले जाने की मज़बूरी बतलाई। माता जी मना नहीं कर पाई। दीदी चली गई। सुधा भी राहत  की साँस ली  बोली विद्या बिना किसी शिकायत हम लोग ज्योति दीदी को बिदा किये। बहुत बड़ा काम हो गया। विद्या सिर्फ सिर हिला का हामी भरी  .उसने मन ही मन सोचा दीदी तो गई लेकिन माता जी को मेरे लिए नियम बना कर दे गई। अब तो मुझे उनके अनुरूप ही कार्य करने होंगे। वह उसी तरह गुम  शूम रहती जैसे जो बताता कर देती। माताजी खुश थी की चलो ब्यवहार तो निभाना सीख  गई।

बिद्या बरामदे में बैठी चावल साफ कर रही थी ,दोपहर का समय था. जेठ की दुपहरिया की गर्मी के क्या कहने। उमाकांत सिर में गमछा लपेटे हुए तेजी स घर में दाखिल हुए आँगन में रखे पानी से हाथ पैर धोते हुए बोले ,बिद्या जल्दी कुछ खाने को दो ,जोर की भुख लगी हैं। बिद्या चावल छोड़ कर उठी और रसोईघर में गई। खाना ले कर आई तो देखा उमाकांत अपने कमरे में चले गए थे। वहीं  पर चली गई खाना देते हुए बोली क्यों क्या बात हैं। उमाकांत ने कहा कुछ नहीं कोई बात नहीं हैं। खाना खा कर तुंरत ही बाहर  निकल गए।

बिद्या को उमाकांत का इस तरह आना और पुनः निकल जाना कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह इस चिंता में पर गई की कुछ गड़बड़ तो नहीं है। वह माता जी के पास गई सारी बातें बताई। माता जी पूछा ये  बबुआ तू ता ना कुछु बोललू।  नहीं माँ हम कुछ नहीं बोले। माँ भी परेशान हो गई। उन्होंने बिद्या को डपटते हुए बोली ,तहरा कुछहो  समुझ नइखे। हमरा के बोलउतु तब न। अब कहा गइलन अब का करी। बिद्या को समझ नहीं आ रहा था। माता जी से बोली माँ बाबूजी को भेजिए पता करने। आप घबराइए नहीं वो तो रोज ही जाते हैं  आज सिर्फ हड़बड़ाए हुए थे। माँ आप बाबू जी से बोलिये। इतना कह सुधा को बताने चली गई। सुधा भी सुन कर परेशान हो गई।

माँ बाबूजी से बोली की उमाकांत हड़बड़ैले  कहाँ गइले हैं। बाबूजी बोले अरे शांति रहिए छोटकी कनिया के पापा के तबियत ख़राब के समाचार आया  उनको अस्पताल ले कर गया हैं  जाते समय कहा हैं  की हालत ख़राब हैं। किसी को कुछ नहीं बोलियेगा। माता जी बिद्या के पास आकर बोली बबुआ बाप कहलन है की उनका के बता के गइलन है आवते होइहैं। बिद्या आराम  करने चली गई। शाम हो गई उमाकांत नहीं आए  ,राधाकांत भी नहीं आए  आज क्या हुआ हैं।

विद्या को बेचैनी बढ़ रही थी आखिर क्या हुआ  ,कुछ पता नहीं चाय रहा हैं वह तकिया का टेक  ले कर बिछावन पर बैठी हुई कई तरह के अच्छे -बुरे बिचारो में उलझी हुई थी। रात के बारह बजे दरवाजे पर ऑटो के रुकने की आवाज सुन कर विद्या दरवाजे की और तेजी से भागी। तभी उमाकांत भी तेजी से अंदर की और आते हुए आवाज दिए माँ  माँ कहा है ,विद्या किधर हो जल्दी आओ  कहते हुए सामने राखी कुर्सी पर बैठ गए। माँ भी उठ कर आ गई विद्या भी घबराते हुए पहुंची। क्या बात बात हैं ,कहाँ चले गए थे जो इतना देर हुआ। उमाकांत ने उसके प्रश्नो का कोई जबाब नहीं दिया। उसके चेहरे की और देखते हुए उसके हाथ को पकड़ कर बोले विद्या चलो पापा की तबियत ठीक नहीं हैं  उनको अस्पताल में भर्ती काके अभी आ रहा हूँ  देर नहीं करो सारी बात रास्ते  बताऊंगा। विद्या जल्दी कपड़ा बदल कर आ गई और बोली चलिए  माता जी भी वही बैठी थी बोली बबुआ का भइल बा  हमरो के लेले चलता तो तानी देख लिहती। उमाकांत बोले माँ  रात  में आपको बहुत दिक्कत होगी सुबह चलिएगा।  लेकिन माता जी  संतोष नहीं हुआ बोली बबुआ का भइल बा हमरो  के बतावा। ,इतना सुनते ही विद्या को  क्या हुआ माता जी की और घूम का जोर से बोली  क्या  पूछ रहीं है पापा को का हुआ आपको तो  हमारा  हँसना खेलना सुहाता नहीं है फिर आप मेरे पापा के बारे मत पूछिए।इतना कहते हुए वह ऑटो में जाकर बैठ गई उमाकांत भी उसको ले कर चले गए  बरामदे में बैठी माँ इस अप्रत्यशित बात से हतप्रत थी  वह रोते हुए सोच रही थी कि कितना प्यार दुलार अरमान से छोटकी बहु को घर में सब रखे है। उसके लिए ही उसको रीत रिवाज परिवार की मान  मर्यादा  का ज्ञान देने के लिए टोका टोकि को वह इतना दिल पर  ले ली ओहहह माँ लम्बी सांस लेते हुए बोली जेकरे ला चोरी कईली ओहे कहलाक चोर   इस लोकोक्ति का मतलब जिनकी भली का प्रयास किया  उन्होंने ही कहा की आपने हमें  कष्ट  दिया।

 

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