असहजता
May 24, 2022
प्रकीर्ति ,समय की
प्रतिकूलता ही ,
बिपत्तिकाल हैं।
हर मोड़ पर
परिस्थितिओं ,
की
असमानता ,
कठोरता से भावनाओं को
दमन
करती हैं।
साथी मन ही
परवाह
कर सकता हैं ,
उस क्षण की ,
कोलाहल
और
तड़प की।
किसी के ,
हाथो की ऊँगली
बनती हैं ,
सहारा।
जीवन में ,
स्थाई स्तम्भ की ,
भूमिका
निभाना नैतिकता हैं ,
पर
आदर्श आशावादिता की
पराकाष्ठा हैं ,
जो गिरा हैं ,
उसे उठाना ,
होंसलों को
बुलंदी देना भी किसी की
फितरत हैं।
चोट देने वाले ,
दे कर ,
चले जाते हैं ,
मरहम ,
लगाने वालों की
औकात
अलग हैं।
काश
संकट में हर कोई ,
असहजता
को दूर फेंक ,
अपनेपन का उत्साह ,
जगा जाता
धन्य धन्य
होता
ब्यक्ति और ब्यक्तित्व।