नवरात्र एक संकल्प
October 18, 2020
या देवी सर्वभूतेषु ,मातृरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तयै नमो नमः।।
‘‘माँ , जगदम्बा , हे पराम्बा आपको मेरा नमस्कार हैं , करबद्ध हो कर हम आपसे विनती कर रहे
हैं , माँ आपके शरण में हैं। हे माँ जगत जननी मेरा प्रणाम स्वीकार करे , हम सब पर कृपा करें ,
हे महामाया ,सबका कल्याण करने वाली माँ ,सकल संसार की रक्षा करें। विपदा को हरने वाली
परमेश्वरि महामारी के संकट से मानव जगत की रक्षा करें ”
नवरात्र में माँ दुर्गा के नौ रूपों साधना का समय हैं। अश्विन और चैत्र की नवरात्री मुख्य रूप से लोगो बीच प्रचलित हैं , लेकिन गुप्त नवरात्र की साधना का भी बहुत महत्व हैं। अक्सर माँ के साधक गुप्ता नवरात्र में भी शक्ति के नौ रूपों की साधना करते हैं। मातृ शक्ति की साधना से इक्छित फल प्राप्त होती हैं।
ऋतू परिवर्तन का समय हैं। अभी कोरोना काल में नवरात्र की सामूहिक पूजा नहीं करने की बात की जा रही रही हैं। जितने भी धर्म के जानकार हैं ,वो व्यक्तिगत पूजा को समयानुकूल बता रहे हैं। ऐसे में हमारा कर्तव्य बनता हैं की हम अपनी नवरात्र पूजा घर में ही सम्पन्न करे। नवरात्र साधना हमारी आंतरिक ऊर्जा को जाग्रत करनेवाली साधना हैं। मातृ शक्ति के नजदीक रह कर उनकी छत्रछाया में संकल्पित हो कर सयंम, नियम के साथ अचार व्यवहार करते हैं। साधना काल में हमारा मन ,विचार ,भाव को शुद्धि करने का अवसर मिलता हैं। कलमस कसाय को दूर कर, साफ निर्मल अंतर्मन में आनंद का अनुभव मिलता हैं। साधना की समाप्ति पर शरीर और मन में ताजगी महसूस होती हैं। कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती हैं। शरीर स्फूर्तिवान और मन प्रसन्नचित रहता हैं।
नवरात्र साधना का प्रमुख स्रोत दुर्गा सप्तशती हैं, जिसमे माँ की मंत्रो द्वारा स्तुति की गयी हैं। स्तुति में स्रोत उच्चारण का महत्व हैं।
शुद्ध उच्चारण के साथ मंत्रों का पाठ करना मत्वपूर्ण नियम हैं। जो जानकार हैं उनको सप्तसती पाठ का नियम पता हैं। लेकिन जिनके पास पर्याप्त जानकारी नहीं हैं, उन्हें स्वयं अतिविश्वास कर पाठ करने से बचना चाहिए। बल्कि किसी जानकार व्यक्ति के निर्देश में सप्तसती का पाठ करना हितकर होता हैं। फिर भी कोई विकल्प नहीं मिलने पर दुर्गा सप्तश्लोकी , दुर्गा कवच, अर्गलास्रोत , देवीसूक्तम , दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला, सिद्धकुंजिका स्रोत का पाठ किया जा सकता हैं। इन सब को किलक मन्त्र के बिना भी किया जा सकता हैं। ऐसा कई लोगो का मानना हैं।
पूजा साधना के समय सिर्फ हम अपने स्वयं के लिए मांगते हैं। माँ भगवती देती भी हैं। हमसबकी आशा रहती हैं की भगवान हम सबकी झोली भर दे। माता की दरबार में हर किसी की मुरदे पूरी होती हैं। कोई खाली नहीं लौटता, ऐसा हम सब के अंदर विश्वास बना रहता हैं। परन्तु हमे विचार करना चाहिए की उस परमशक्ति से मांगते तो बहुत कुछ हैं ,लेकिन उस के बदले हम क्या अर्पित करते हैं ?
आज हम जिस काल से गुजर रहे हैं, पूजा का सच्चा अर्थ हैं प्रकीर्ति के नियमो को जानना , समझना और उसके अनुकूल चलना। मानवहित के क्रियाकलाप , समाज के हितार्थ चिंतन, अपने कर्तव्यों का निर्वाहन , अधिकारों का उचित प्रयोग ,यही हमारी सच्ची साधना हैं। माँ भगवती निर्मल मन , स्वच्छपरिवेश ,सात्विक आहार , संयमित दिनचर्या ,संतुलित वयवहार से ही प्रसन्न होगी। कर्तव्यनिष्ठ चेतना ही हमे उत्कृस्ट परिवेश देगी, और हम हमारी चुनातियों का सामना कर सकेंगे। आने वाली पीढ़ी अच्छी सोच की बेहतरीन पौध होगी। इसी सोच के साथ माँ भगवती से प्रार्थना हैं इस महामारी से रक्षा करे , समाज को त्रास देने वाली आसुरी शक्ति को नस्ट करे।
रोगनशेषाणपहंसि तुष्टा रुष्टा तू कामान सकलानभीष्टान।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वंमश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।