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भिखारी और उन्नति का सूत्र

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भिखारी को भीख देना हम अपना कर्त्वय समझते हैं। चलो कुछ रूपए  दे कर हम उसका उपकार कर देते हैं। ऐसी ही सोच हमारे अंदर होती हैं। कुछ ज्यादा विचार करने पर यही आता हैं , हट्टा -कट्टा हैं काम कर सकता था, इसे काम कर के पैसे कमाना चाहिए, तरह तरह से बातें कर लेते हैं।  हर भिखारी की जरुरत हम समझ नहीं सकते  हैं।  कोई भूख से परेशान हैं , कोई बीमार हैं , कोई दिव्यांग हैं , किसी का कोई नहीं हैं या फिर अपनों ने साथ छोड़ दिया। ऐसा  कुछ भी हो सकता हैं।

अभी हाल ही के अख़बार में ये समाचार आया की एक उच्च शिक्षा प्राप्त महिला भीख मांग रही थी। अच्छी अंग्रेजी भाषा की जानकार थी , भीख मांगकर अपने बच्चो को शिक्षित करने का प्रयास कर रही हैं। अच्छी शिक्षा के बावजूद अपनों का साथ नहीं मिलना , शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से कमजोर थी , ऐसी में वहाँ  के सक्षम  संस्थाओं  ने  मदद की।  उनको रहने , आजीविका ,एवं  बच्चों  की शिक्षा -दीक्षा  की व्यवस्था की। अनेक घटनायें  हैं जिससे पता चलता हैं की भिक्षावृति हमारे समाज में हमारी ही  व्यवहार की असामाजिकता ,अकर्यमणता , के साथ संवेदनहीनता  की देन  हैं।

 

 

इसी सन्दर्भ में कही पढ़ी हुई कहानी  याद आ रही हैं। एक भिखारी जो रेलवे स्टेशन पर भीख मांगता था, हर आने जाने वाले के आगे हाथ फैलता , जो भी मिलता ले कर आगे बढ़ जाता।  इसी क्रम में एक सेठ के आगे भी हाथ फैलाया बोला ” माई बाप कुछ दे दो भगवान आप का भला करेगा। ”

सेठ उसे ऊपर से नीचे देखा फिर बोलै ” मैं व्यापारी हूँ , तुम्हे भीख चाहिए तो , बदले में मुझे  क्या दोगे ? क्योंकि जब भी मैं देता हुँ , बदले में कुछ लेता हु। बिना लिए मैं किसी को भी कुछ नहीं देता। “

 

भिखारी निरुत्तर था।  कुछ जवाब नहीं दिया।  और आगे बढ़ गया। किन्तु यह प्रश्न उसके दिमाग में घूम रहा था।  बदले में मैं  क्या दे सकता हु ? इसी सोच में वो खोया रहा।  एक ट्रैन आयी  और गयी, दूसरी आयी और गई , परन्तु उसका ध्यान इसी प्रश्न पर लगा रहा।  अचानक उसकी नजर स्टेशन के हाते में लगे पौधे पर पड़ी। जिसमे सुन्दर सुंदर फूल लगे थे। उसने ये फूल तोड़ लिया। उसके दिमाग में चल रहे अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया। जिससे भीख लूंगा उसको ये फूल दे दूंगा।

 

 

 

ट्रैन आयी, सवारियों   के आगे उसने हाथ फैलाया , उसे एक सिक्का मिला , सिक्का झोली में डाल  कर बड़े ही संतुस्ट भाव से फूल उस सिक्का देने वाले व्यक्ति को दिए। फूल पा कर व्यक्ति भी प्रसन्न हुआ। इस तरह भिखारी हर भीख देने वाले को बदले में फूल देता।  ऐसा करने  से उसे भीख भी अब ज्यादा मिलने लगी। क्योंकि सुन्दर फूल के बदले कुछ पैसे देने ,में लोगो को कोई परेशानी नहीं थी, बल्कि लोगो की इच्छा भी बढ़ गयी थी। ऐसी परिस्थिति में भिखारी बाजार से फूल खरीदने लगा , जो भीख के बदले में फूल देता था अब वो विक्रेता बन कर फूल देने लगा। उसको समझ में आ गया की वह भी व्यापारी बन गया। अब एक दूकान से बड़ा दूकानदार बन गया हैं। भिखारी से  अब वह फूल वाले भैया बन गया। अब उसकी तमन्ना थी , की सेठ मिले और उसे वह शुक्रिया अदा करे , बताये की वह भी अब व्यापारी हैं।

 

नए जीवन को उन्नति का सूत्र सेठ की बातो से ही मिला।  सेठ ने कुछ नहीं दिया ,लेकिन उसने भिखारी के जेहन में एक प्रश्न पैदा किया जिसका उत्तर उसे सकारात्मक प्रयास  की ओर ले गया। इंसान यही पर जीतता हैं। उपेक्षा का भाव रख कर हम किसी की सहायता नहीं कर सकते मजबूरी कही भी, किसी के साथ भी हो सकती हैं।  मानसिक जाग्रति , उपलब्ध अवसर ,सुसंस्कृत परिवेश में भिखरी  भी व्यापारी बन सकता हैं। वह समाज में अपना स्थान बना सकता हैं।  सम्मान के साथ जी सकता हैं।  हमे निरंतर पहल करते रहना चाहिए।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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