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प्रतिकूलता से प्रेरणा तक

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आज के सन्दर्भ  में बात करे तो कोविद-19 का आगमन  विश्व सहित देश  में इसका फैलाव गंभीर समस्या हैं। पूरा विश्व समाधान की फिक्र में हैं। लॉकडाउन (lockdown) की घोषणा  के बाद जो मौहौल बना, काफी दर्दनाक था। आवाजाही बंद, घर से बाहर नहीं निकलना तकलीफदेह था।

रोजी रोटी की समस्या इंसान को परेशान कर रही थी। हमसब इसी तानाबाना में रह रहे थे की  कैसे समय कटेगा।   बीमार अपनी बीमारी लिए घर में थे। बच्चे अपने भविष्य  को  बस्ते  में  बंद कर घर में थे। सभी के अंदर  एक ही सोच चल रही थी, की भविष्य  का क्या होगा ?

 

समय बलवान हैं , कब कैसे और कहा इंसान को उसकी औकात दिखा दे कहा नहीं जा सकता। अभी का दौर इसी बात का प्रमाण है। हमारे सारे  तर्क और तरीका धरे के  धरे रह गए। हमारी अर्थव्यवस्था, हमारी दिनचर्या  क्रिया-कलाप सभी के सभी प्रभावित हुए। इसका सबसे खतरनाक असर  इंसान के मानसिक  अवस्था पर परा। जो जहा हैं,बेचारा लाचर ,मायूस क्या करे ,कैसे करे ,कैसे जिए आदि आदि।

 

इस लेख में कहने का तात्पर्य ये है, प्रकृति  की अपनी व्यवयस्था  हैं , वो संतुलन कायम करती हैं।  हम इस प्रकृति  का हिस्सा हैं।  हमे उसके साथ अनुकूलन करना ही होगा। क्योंकि जिसने प्रतिकूल परिस्थति  में अनुकूलन नहीं किया, प्रकृति  उसे  फ़ेंक देती हैं , नष्ट कर देती हैं। सामान्य सी बात हैं ,हमे हमारी सोच  को व्यवस्थित  करना होगा।  हम क्यों असंतुलित होते हैं  प्रतिकूलता हमे ज्ञान देती हैं, प्रेरित करती हैं , इशारा करती हैं ,मान जाओ ,समझ  जाओ , संभल जाओ।

 

अभी अवसाद की बहुत चर्चा हैं।  लोगों के अंदर  अवसाद पनप रहा हैं।  ज्यादातर लोगो को अवसाद अपने गिरफ्त  में ले रहा हैं , आत्महत्या , आक्रामकता  आदि घटनाओं में वृद्धि हो रहे हैं।  ये सब  क्यों हो रहा हैं ,क्योंकि इनकी दिनचर्या और काम करने के तरीके में बदलाव हुआ हैं। दिनचर्या जो सुबह से रात  तक  व्यस्त होती थी। उत्साह और आनंद के लिए अपने को बहरी दुनिया के अधीन रखे थे।  अचानक हमारी वह दुनिया जो  घर से लेकर कार्यस्थल तक व्यस्त होती थी, सामाजिक दुरी के रूप में तब्दील हो गयी। ऐसे में परेशान होना स्वाभाविक ही थी।

 

जीवन अनमोल है ,मुल्यवान चीजों को हम संभाल  कर रखते हैं , सजा कर रखते हैं। फिर हमारी  अपनी जिंदगी को भी सँभालने और सजाने की जरूरत हैं । सुख दुःख जीवन का हिस्सा हैं।  हम सब के जीवन में ये प्रक्रिया चलती रहती है। हमे भगवान् को शुक्रिया  अदा करनी चाहिए ,उस  सुख के लिए जिसे हमे भगवान् ने दिएा हैं।  प्रार्थना करनी चाहिए  दुःख को सहन करने की झमता देने के लिए, जो दुःख हमे मिला।   सूख दुःख हर्ष विषाद , छोभ  ,ईर्ष्या , कुंठा ,अन्यान्य  तरह के मानसिक परेशानियां   इंसान के जीवन में आती हैं  हम सब इससे प्रभावित होते हैं।  इसी वक़्त हमारी जीवन बगिया में शांति प्रेम सदभाव  की जरुरत होती हैं।   आलोचना, कटाक्ष , उत्तेजना, जीवन को निराश एवं  हतोत्साहित  करने लगती हैं ,यही  पर हमे  इससे अपने को बचाना हैं। परिवार और समाज का दायित्व बनता हैं, ऐसी नकारत्मक परिस्थती को आने  से रोके।  इसके लिए जरुरी हैं , हम सब अपने विचार को जीवन मूल्यों की कसौटी पर स्थापित करे।  इसके लिए  भावनाओं को प्रवाह मिलना चाहिए। अंदर उठ रही भावनाओं  और विचारों  को निर्बाध सम्प्रेषण को प्रेरित करे। यह  जरुरी हैं की  विचार नकरात्मकता की और न जाये इसके लिए मन, बुध्दि ,तर्क को विवेक की कसौटी पर परखना होगा।

 

इस  लॉकडाउन  (lockdown) की अवधी में नकारात्मक पक्ष अनेक होंगे , लेकिन सकारत्मक पक्ष भी बहुत हैं।  बहुतो ने इसे अवसर के रूप  पर देखा। और नित्य नए  नए अविष्कार होने लगे। यहीं  कहते  हैं आवश्यकता  ही अविष्कार की  जननी हैं, जो बहुतो ने समाज के हितार्थ अविष्कार किये हैं,  फेसमास्क  (facemask ), रोबोट आदि अनेक उपकरण।

 

सबसे अच्छा जो रहा हैं ,इंसान का वो कृषि आधारित अनुभव जिसमे इंसान खुद की बागवानी को उत्साहित हुआ।  समय का बेहतर उपयोग और पर्यावरण का भरपूर संरक्षण।  आज हर कोई खेती को अपनाना चाह  रहा हैं।   साग – सब्जी उगाने से लेकर बेचने तक को झिझक नहीं हैं।  शौक से,  शान से इस कृषि कार्य  को करने का जज्बा पैदा हुआ। 

फैशन की जगह समय और उपलब्ध साधन में फिट हो जाना बहुत अच्छा लगता हैं।  कपड़ा से लेकर चपल तक का मैनेजमेंट,  पानी -पूरी से लेकर चाट समोसे का स्वाद  तक। सभी में कंजूसी समय का अनूठा अनुभव समाज को मिला हैं। समय का अनूठा अनुभव समाज  और परिवार को मिले हैं।  इस तरह साफ़ हैं की हम अपने  सोच को इस कदर साध  रहे हैं जिससे  अनुकूलता बनी रहे।   पारिवारिक परिवेश में भावनात्मक आदान  प्रदान कायम हो।

 

हर इंसान के अंदर एक छुपा हुआ बच्चा होता हैं ,जो निरंतर खुश  रहना चाहता हैं खेलना चाहता हैं , मचलना चाहता हैं, लेकिन हमारी बुद्धि और विवेक इस बच्चे को दबाये रखती हैं।  यह सच हैं की इंसान अपने दिनचर्या में मस्त रहे तो उसकी शारीरिक और मानशिक स्वास्थ  की परिकल्पना उत्कृस्ट होगा । स्वस्थ  रहने के लिए मदमस्त दिनचर्या उत्तम मानी जायगी।

सुकरात अपनी आवश्य्कता  को सिमित रख कर  आनंद के साथ जीवनयापन को उत्तम मानते थे ,वही पर अनेक विद्वान्  दार्शनिको  ने आनंदमाय जीवन को जीने के लिए जो सूत्र बताये हैं वह सरल सहज रहना ही हैं।

अर्थशास्त्र की परिभासा में पूंजी का मतलब कुछ भी हो लेकिन मेरे  अनुसार  जो हमारे आत्मबल और साहस को बढ़ाये वही हमारी पूंजी होती हैं। चाहे वो विचार हो, परिवार हो, समाज हो क्योंकि धन एक साधन हैं कर्ता  का विकल्प नहीं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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