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बंदिशे

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बंदिशे क्यों नागवार हैं ,

माँ के गर्भनाल से बंध कर ही ,

बचपन आया ,

पौधें की जड़ ,

मिटटी से बँध  कर ही ,

लहलहाया ,

नदियां किनारो से ,

बंध कर ही धारा बन पाई ,

 हे मन ,

प्राणवान मनुष्य ,

हरी भरी प्रकृति ,

धरा की अनवरत गमन ,

बंदिशों की दें है ,

सोचना हैं ,

क्यों हम ,

मर्यादाओं की बंधन ,

से परेशान होते हैं ,

 

 

 

 

 

 

 

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