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हमारी सोच से इम्युनिटी प्रभावित होती है

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हमारा मन कई परिस्थिति में प्रभावित हो सकता हैं। जब किसी नुकसान  का भय हो,  तो हमारा मन परेशान होता है  साथ ही जब किसी जोखिम  की जानकारी हो, तो भी हम परेशान होने लगते हैं।  सावधानी शब्द यथार्थ  रूप से ऐसे ही समय में जरुरत  होती है।  साधारण आदमी जिम्मेदारी की परिभाषा का इस्तेमाल नहीं करता है, लेकिन वही साधारण आदमी जब किसी जोखिम की जानकारी और उससे होने वाला नुकसान  को समझ लेता है तो उसको भय होता है।  और यही भय  इंसान  को सावधानी लेने को प्रेरित करता है। यह ऐसी मानसिक प्रक्रिया हैं जिसने इंसानो को कठिन समय में झुझते हुए आगे बढ़ना सिखाया हैं।

साधारनतया हर व्यक्ति की मानसिकता अलग होती हैं , लेकिन भीड़ का हिस्सा बनने की मानसिकता लगभग एक सी होती है , और यही पर लापरवाही होने लगती है। समझदार  और जिम्मेदार व्यक्ति भी ” चलो अभी यह कर लेते है ” या ” इसे छोड़  देते है ” या फिर ” ज्यादा सोचते हो ” या ”  ये क्या पागलपना  पाल  ली है ” ऐसे भावनाओं  को  व्यवहार में लाते हैं।

इस नयी परिस्थिति ने मेरे अंदर एक मजबूत विचार दिया  हैं  , की हमें हमारी सोच को व्यव्यस्थित करने की जरुरत है। कमरे का सामान हमारा ही हैं , और हम ही उसे बिखेरते हैं, और हमे ही उससे परेशानी होती है , लेकिन जब उसे यथास्थिति व्यस्थित करते है, तो उससे हमे ही सुकून मिलता है। हम ही तय करते है , हमारे कमरे में कौन सा सामान कमरे में रखना हैं , और किसे बाहर  करना हैं। ठीक उसी तरह हमारे मन मस्तिक में कौन  सा विचार हमारे सेहत के लिए सही  हैं , और कौन सा विचार गलत प्रभाव डाल सकता है , इसका हमे विचार करने चाहिए । इतनी सी जवाबदेही बनती है।

कोरोना संक्रमण के प्रसार की शुरुआती दिनों मे काफी तेजी आयी थी। हर आदमी  लॉकडाउन ( lockdown ) को मान तो रहा था  , बस जवाबदेही की परिभाषा  को लागु नहीं कर पा  रहा था ।

इन पहलुओं  पर गौर  करे तो सबको  इसका जोखिम का भय नहीं बल्कि जिम्मेदारी  आने की जरुरत है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं अपनी जिम्मेदारी को अपने  और सामने वाले को बताएं। ऐसा नहीं की आप खुद पालन न करे और दूसरे को एहसास करायें। समय कठिन हैं। रोजी रोटी की समस्यां खरी हुई हैं , किन्तु विपत्ति काल में , मनुष्या धैर्य  और समझदारी  से ही अपने को सुरखित रख सकता हैं।

मेरा आशय हैं , पढ़े लिखे लोग जो अपनी जवाबदेही नहीं दिखा पा रहे हैं , थोड़ी समझ  भी रखनी होगी की जो कुछ भी अभी घट रहा है , उस पर किसी का नियंत्रण नहीं हैं , किन्तु हर नागरिक अपनी क्षमता  और अपने साधन के मुताबिक योगदान देना तय करे।

सबकी मानसिक अवस्था एक जैसी ही हो रही हैं। हर पेशेवाले व्यक्ति के सामने चुनौती बना हुआ है , क्योंकि भय और असुरक्षा हर व्यक्ति के मान मस्तिक्ष्क पर छायी  हुई  हैं। काम के  जगह हो , या फिर जरुरत के सामान लेने  वक़्त , माहौल यही बना हुआ हैं। कुछ दिनों का माहौल  कुछ इस तरह रहा जैसे बच्चों गब्बर आ जायेगा , देखो कोरोना लग जाएगा।

तात्पर्य , काम करना है जवाबदेही के साथ , सावधानी रखना सबसे बड़ा सहारा है। शरीर और मन आपका हैं, आप इसे किसी कमजोरी का शिकार नहीं बनने दे।

अज्ञानता भय और असुरक्षा प्रदान करती है

ज्यादा से ज्यादा अपने आस पास की गतिविधि एवं सकारात्मक क्रियकलापो की जानकारी रखे , सब ठीक होगा। हम सभी  स्वस्थ रहेंगे , क्योंकि हमने अपनी जिम्मेदारी समझ  ली हैं  , और फिर भी कुछ हुआ उसका सामना भी हिम्मत के साथ करेंगे।

 

कोरोना काल में मनुष्य की दिनचर्या में बदलाव आया है। खान पान की दिनचर्या बदली हैं  , बच्चे  एवं बुजुर्गो   पर इन सब पर इसका असर ज्यादा  हैं। हमे यहाँ गौर करने की जरुरत हैं , हर किसी को खुराक की संतुलित मात्रा चाहिए। मौसम  के बदलावों का भी असर पर रहा हैं, इसलिए अपनी सेहत को सही रखना , जरुरी कार्य  हैं। जहाँ तक हो सके संतुलित आहार लें , प्रकिर्तिक रूप से इम्युनिटी को बढ़ाने में , योग और आयुर्वेद से नजदीकी बनाना हर इंसान को चाहिए। इससे मानसिक तनाव दूर होगा , शारीरिक  बढ़ेंगी , शरीर  स्वस्थ रहेगी।

मन के हारे हर , मन के जीते जित

 

बस ध्यान रखना है की सामाजिक दुरी का पालन करे , मास्क जरूर लगाएं। सेनेटिज़ेशन को अपनाएं। जरुरत हो तभी निकले , घर पर रहे सुरक्षित रहे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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