जीवन अनमोल है–अपेक्षाओं को समझें।
October 18, 2022
जीवन अनमोल हैं। जब तक जीवन हैं इसकी क़द्र करते हुए श्रेष्टतम परिकल्पनाओं को सार्थक करें। किसी ने कहा हैं की तुम समय की कद्र करो समय तुम्हारी अपेक्षाओं को समर्थ करेगा। कल्पना की उड़ान भरना हर कोई के लिए सम्भव हैं लेकिन कल्पनाओं को मूर्त रूप प्रदान करना सहज नहीं होता। अनवरत प्रयासरत होना ,धैर्य के साथ समय प्रबंधन और अनुशासित जीवनचर्या द्वारा ही सम्भव हो पता हैं। अपेक्षाएँ अनंत हो सकती हैं अनेको पूरक प्रतिरूप भी हो सकती हैं। हम किस क्षेत्र में किन हद तक की अपेक्षा पल रहे हैं यह सब कोई निश्चित प्रक्रिया नहीं हैं। ब्यक्ति की अपनी समझ और पारिस्थिति पर निर्भर करती हैं।
समझा जा सकता है की अपेक्षाओं का बड़ा होना पारिवारिक सामाजिक और बैयक्तिक स्तर पर बोझ माना जा सकता हैं। क्योंकि ब्यक्ति अपेक्षाओं के बोझ में दबा होने पर ही अनेकोनेक मानसिक शारीरिक विकारो के गिरफ्त में आ जाता हैं। बिलकुल सत्य हैं की इंसान अपेक्षा पल कर ही दुखी होता हैं,परन्तु एक सत्य यह भी हैं कि अपेक्षा ही सम्भावनाओ को समर्थ करने जिद पालती हैं। प्रकृतिजनित उपक्रमों में भी हमारी अपेक्षा ही संभावनाओं को तलाशती हैं। अपेक्षाओं के इर्द गिर्द सकारात्मकता के साथ नकारात्मकता भी मंडराती हैं। यदि अपेक्षाओं को निःस्वार्थ रखा जाय तो सार्थक संभावनाओं को समर्थ करने का साधन बनता हैं। बिपरीत स्वार्थ पूरित अपेक्षा हमारी मूल चेतना को भ्रमित कर देती हैं। यही से हमारे उत्थान पर प्रश्न चिन्ह लग जाता हैं। हम निरन्तर आशा निराशा ,प्रतिशोध ,कुंठा ,दुराग्रह आदि अनेक विकारों के चंगुल में फँस जाते हैं।
अपनी श्रेष्टतम संभावनाओं को समर्थ करने के लिए आसान सा किन्तु बहुत ही समर्थ उपाय हैं, योग और गुरु वरण। योग के साथ प्रकृति और ब्यक्तित्व का संतुलन बनता हैं,जिसमे एक ब्यक्ति स्वस्थ रह कर स्वस्थ मानवीय ब्यवहार करता हैं तो उसकी अपेक्षाओं को संतुलन मिलता हैं। संभावनाए अनंत हैं ,किन्तु ब्यक्ति के अंदर उसे पहचानने और फलीभूत करने की पात्रता होनी चाहिए। जीवन की हर संभावना इंसान के अंदर छिपी होती हैं। जरुरत हैं उसे जाग्रत करने की ,जो खुद को पहचानता हैं उसे ही दुनिया पहचानती हैं।
इस तरह हम अपनी अपेक्षाएँ जो खुद प्रति ,प्रकृति के प्रति ,समाज और देश के रखते हैं ,उसकी पुष्टि के लिए पुरषार्थ और परमार्थी होना भी एक शर्त हैं। स्वार्थ में ब्यक्ति का ब्यवहार तुष्टिकारक होता हैं ,जिसमे सत्यता का अभाव होता हैं ,वह ब्यक्ति के विचार और ब्यवहार को भटकता हैं। इस तरह संतुलित अपेक्षा हमारी संभावनाओं को समर्थ करने का साधन बनती हैं,और ब्यक्ति स्वंम ,परिवार ,समाज और देश को बेहतर दे कर अपने मनुष्य जीवन सफल बना सकता हैं।