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जीवन मूल्यों का अवलम्बन ही सकारात्मकता हैं।

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मनुष्य जीवन  अनमोल हैं। प्रकीर्ति हमें स्वीकार्य और अस्वीकार्य कर्मो  के   अनुशासन में बांध रखा हैं। इन्हीं नियमों के तहत जीवन की गति चलती हैं। भगवतगीता हमें हमारे कर्मो को बहुत ही स्पष्ट रूप से समझाया हैं. कर्म और अकर्म  ,जीवन के महत्वपूर्ण पहलू  हैं। हम हमारे लिए किये गए कर्मो का मूल्याङ्कन उसकी सकारात्मकता के आधार पर करते हैं। जब भी सकारात्मक कर्म पर विचार पैदा होंगे उसमें नैसर्गिक पोषण और उत्थान के बीज  निहित होंगे। नकारात्मकता ही अकर्मण्यता हैं।  जीवन के उदेश्यों को  पूर्णतः निष्फल करने का कारण भी हैं अकर्मण्य होना। कोई ब्यक्ति जन्मजात अकर्मण्य नहीं हो सकता  ,यह सत्य है की नकारात्मक्ता  के बीज भी हमारी ही परिवेश में मौजुद हैं। चिंतन का विषय हैं

ब्यक्ति का जन्म निरुद्देश्य नहीं हैं। जन्म के पहले से ही संस्कारो का सिलसिला शुरू हो जाता हैं। गर्भधारण से ले कर पुंसवन छठियारी ,मुंडन आदि  अनेको संस्कारो द्वारा श्रेष्तम गुणों को मानव जीवन के अंदर लाने  का प्रयास होता हैं।  बिभिन्न धर्मावलंबी अपने अपने धर्म के अनुसार शोधन मार्जन के नियम अपनाते हैं। सामाजिक धार्मिक रूप से स्थापित  संस्कारों से यह साबित होता हैं की सकारत्मकता के लिए ही सारे  संस्कार हैं।

ब्यक्ति में नकारात्मकता का  आना अपेक्षित  प्रयासों पर  एक प्रश्न चिन्ह  खड़ा करता हैं। ब्यक्ति के साथ परिवार और समाज को भी यह समझने की जरुरत है।  चिंतन स्वरुप इसके पीछे एक ही  कारण दिखता  हैं ,परिवेश में ब्याप्त विकार जैसे,  स्वार्थ ,लोभ, ईर्ष्या, कुंठा, तिरष्कार ,अकेलापन ,अनमनापन,आलस्य,  ही इक्षाशक्ति को कमजोर करती हैं।

ब्यक्ति के अंदर वह ताकत का अभाव दीखता हैं ,जिससे ब्यक्ति अपने को इन विकारो से अलग रखे सके । यदि हम हमारा परिवार ,समाज अपने अपने जिम्मे का कर्तब्य को पालन करे तो हमारा नैतिक बल मिलेगा इससे उस नकारात्मकता के प्रभाव को ख़त्म  कर सकते हैं।

बालमन से ले कर युवामन सभी में प्रोत्साहन,उत्साह, जिज्ञासा ,चंचलता ,चपलता ,निर्भीकता, सृजनात्मकता का अथाह भंडार हैं। वह अपनी ऊर्जा को इन्हीं ब्यवहारों में  केंद्रित रखता हैं। .उसकी इक्षाशक्ति को यहीं से मजबुती मिलती हैं।  उसके सारे मान्य  क्रिर्याकलाप में प्रोत्साहन से उसको  अवलम्बन मिलता हैं। प्रोत्साहन का अभाव उसके उत्साह को बाधित करता हैं। मुल  रूप से यही से उसके अंदर विकारो का जन्म होता है।

सामाजिक ,पारिवारिक ब्यवस्था के अंदर वह नकारात्मक ब्यवहार को जब महसूस करने लगता हैं ,तब  वह नकारात्मक रूप से प्रत्युत्तर भी देने लगता हैं तो  इससे उसका ब्यवहारिक पक्ष कमजोर होता  हैं। यह एक अवस्था हैं ,जो सब पर एक ढंग से लागु नहीं होता बल्कि कुछ तो जीवन के आदर्श मूल्यों को अपने अन्दर स्थान दे कर उस नकारात्मकता को दूर धकेल देता हैं। वहीं ब्यक्ति अपने उत्थान की ओर अग्रसर होता हैं।

जीवन की प्रत्येक समस्या का समाधान नैतिकता और अनैतिकता का ज्ञान को बिकसित कर पाया जा सकता हैं।  नैतिक समझ  ब्यक्तित्व विकास की महत्वपूर्ण कुंजी भी हैं। नैतिक शिक्षा हमें हमारी पीढ़ी को अकर्मण्यता के जाल मुक्ति दे सकती हैं। जीवन मूल्यों के लिए हमें हमारी मानवीय गुणों का बिश्लेषण और पालन हीं श्रेष्टतम प्रयास हैं।प्रयास छोटे या बड़े हो सकते हैं। लेकिन परिणाम हमें अपने होंसलों को  बुलंदी देते हैं। कुछ भी हो हर सार्थक प्रयास और विवेक के साथ लिया गया निर्णय हमें अवसरों  के साथ जोड़े रखती हैं। अवसर को पहचान कर उस पर  मन्तब्य कायम करना हमारी जागरूकता होगी और  उस पर अमल करना उपलब्धि होगी।

इस तरह अपनी उपलब्धियों को देखने, सुनने, महसुस , करने से मन ऊर्जा से भर जाता हैं यही सकारात्मक सोच  का पुरस्कार हैं। सुमति ही  सामर्थ  प्रदान करती हैं,सामर्थ  ही स्थायित्व देता हैं।

डिस्क्लेमर —यह मेरे ब्यक्तिगत बिचार हैं। कोई बिशेषज्ञ राय  नही  हैं।