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गुल्लक

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गुल्लक की महत्वपूर्ण पकड़ हमारी समाजिक और पारिवारिक अर्थब्यवस्था में रही हैं। बच्चों से ले कर बड़ो तक में  गुल्लक की महिमा  का गुणगान  हैं। दीपावली में ब्यापारी के यहाँ नया खाता वही ख़रीदाता था वहीं गृहस्थी के यहाँ गुल्लक खरीदने की परम्परा रहीं हैं। चाहे अवसर कोई भी हो हमारी बहुत  सी परेशानियों को समाधान का माध्यम हैं गुल्लक। पैसा चवन्नी अठन्नी सिक्का से भरा हुआ गुल्लक का  योगदान किसी बैंक की कम नहीं आँका जा सकता हैं।

मिट्टी का यह गुल्लक हमारी निश्चिंतता का स्तम्भ हैं, जहाँ हम अपनी आवश्यकताओं में से ही कुछ कुछ बचत कर उस गुल्लक में डालते जाते और वही अक्सर हमारे कई बड़े बड़े काम को पूरा करने में अहम भूमिका निभाता हैं । बेटी का तिलक भेजना हो या जमीन की रजिस्ट्री करानी हो ,गाड़ी खरीदनी चाहे पसंदीदा जेवर बनवाना हो ,इन सभी के लिए बचत को जमा रखने की जबाबदेही गुल्लक महाराज की ही थीं। गुल्लक भरने से जो रकम जमा होती उससे हमारी मानसिक मजबूती बनती थी ,चलो कुछ जरुरी काम होगा तो गुल्लक को तोड़ेंगे और कर लेंगे।

गुल्लक भरने और उसे तोड़ने के बाद वह रेज्की ,खुल्ला या फिर चिल्लर कहे ,देख कर जो आनंद आता हैं वह आनंद लाखो रूपये बैंक  खाते में देख कर भी नहीं आये। ऐसा इसलिए नहीं की रूपये और चिल्लर में फर्क पता नहीं हैं ,बल्कि इसलिए की थोड़ी थोड़ी अपनी आवश्यक बजट की रकम, पॉकिटमनी, या हाथखर्चा से बचा कर छोटी छोटी ही सही रकम को ब्यवस्थित तरीके से एक जगह रखना और उसे भरने देने का एक संकल्प को पूरा करता हैं।वह संकल्प ही है जो उसे भरने में मदद करता हैं। यदि खुल्ले या चिल्लर को नियमित गुल्लक में नहीं डालते तो इस ख़ुशी से बंचित रहते।

आज के सन्दर्भ में गुल्लक की विचारधारा वाली परम्परा कमजोर पड़ रहीं हैं। डिजिटल लेनदेन में पैसे की आदान  प्रदान की ब्यवस्था बदल गई। पहले जो बचत का फंडा आम परिवार अपनाता था वह अब रहा नहीं उदाहरण के लिए कहानी को समझते हैं।

सीमा शादी के बाद पहली बार ससुराल आई।  सभी खुश थे। शाम के समय परिवार के सदस्य बैठ कर बातें कर रहे थे उसी समय घर का बच्चा हाँफते हुए अंदर आया और बोला  ,दादी दुकान वाला सामान नहीं दिया ,बोला खुदरा ले कर आओ ,ऐसा कह कर उसने सौ रूपये का नोट दादी के हाथों में थमा दिया। दादी रूपये ले कर मायुस हो गई।पुनः बच्चे को बुला कर बोली सुनो बेटा जाओ उससे कहना उधार दे दो,बच्चा बोला ,नहीं देगा तो ,,दादी बोली उससे कहना सामान दो दादी कुछ और सामान लेने आ रहीं हैं   साथ में  पैसा दे देंगी।

बहु सुन रही थी उसने पास आकर पूछी माँ क्या सामान हैं जो आप परेशान हो रहीं हैं । अरे बहु कुछ नहीं, माँ बोली ,,बिस्कुट के लिए बच्चा तंग कर रहा था। बहु हँस  पड़ी  माँ आप दस रूपये के लिए सौ का नोट खुदरा कर रहीं थी। खुदरा होने के बाद आपके नब्बे रूपये कहाँ जायेंगे आपको पता भी नहीं चलेगा।रुकिए मैं  बाबु को दस रूपये देती हूँ। कुछ ही देर बाद एक फेरीवाला आया जिसके पास अच्छे अच्छे कपडे थे।माँ को कपड़े खरीदने की  इक्क्षा हुई उसने तोलमोल भी कर लिए और दाम अस्सी रूपये तय हुआ। पैसा देने के लिए जा रहीं थीं तभी बहु की बात याद आई उन्होंने कपड़ा लेने से मना कर दिया। अरे छोड़ों नोट क्यों तुड़वाउ  बाद में ले लेंगे। बहु ने समझाया माँ यह आपके लिए जरुरी हैं तो ले लीजिए। अस्सी रुपये कपड़े वाले को दे दीजिये ,दस मेरे भी दे दीजिये ,और बचे दस रुपये गुल्लक में डाल दीजिये। इस तरह आपका काम भी हो गया और बचत भी हो गया।

डिजिटल लेनदेन में रुपया अठन्नी को बचाना सम्भव नहीं हैं। दुकानदार से मोलतोल करना अब लगभग नहीं के बराबर हो रहा हैं क्योकि ऑफर में सब गुम  हो गया हैं खरीदारी में जब तोलमोल होती हैं तो छोड़ने ,घटाने की पेशकश में अच्छी खासी बचत होती हैं। सारी खरीदारी हम इतने पैसे में कर लिए इससे आनंद और संतुष्टि भी मिलती हैं। जो भी बचत होता गुल्लक में जमा हो जाता। साल छह महीने में हमें  कुछ शौक पूरा करने लायक रकम जरूर जमा हो जाती हैं। इससे जीवन में गति बनती हैं  और मैनेजमेंट की सीख बनती हैं।

पैसा जमा करना भी एक कला हैं। जब जरुरत हो जरूर खर्च करें ,लेकिन कुछ हिस्सा जरुर बचत करें। इससे भंडार पूर्ण कहलाता हैं। हमेशा ही छोटी इकाई बचत के लिए रखें। धीरे धीरे वही छोटी  रकम बड़ी रकम बन जाती हैं।बहुत जरुरी हैं की गुल्लक की उपयोगिता को उत्साहित करें ,प्रेरित करें घर के महौल में गुल्लक की  ब्यवस्था रखें। मोबाईल ,नेट बैंकिंग हमारे अवसर को आसान किया,  डिजिटल लेनदेन को आसान किया ,बिज़नेस को ऊंचाई दिया किन्तु गुल्लक की  बात ही अलग हैं।

 

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